ग़ज़ल Poetry (page 20)

उट्ठी नहीं है शहर से रस्म-ए-वफ़ा अभी

दिलावर फ़िगार

मैं ने कहा कि शहर के हक़ में दुआ करो

दिलावर फ़िगार

हुस्न पर ए'तिबार हद कर दी

दिलावर फ़िगार

नींद में खुलते हुए ख़्वाब की उर्यानी पर

दिलावर अली आज़र

मंज़र से उधर ख़्वाब की पस्पाई से आगे

दिलावर अली आज़र

शोर-ए-अतश जो फूलों की हर अंजुमन में है

धनपत राय थापर राज़

ज़रा निगाह उठाओ कि ग़म की रात कटे

द्वारका दास शोला

जब परी-रू हिजाब करते हैं

दाऊद औरंगाबादी

न वो ताएरों का जमघट न वो शाख़-ए-आशियाना

दानिश फ़राही

इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई

चराग़ हसन हसरत

पहले तो उस की ज़ात ग़ज़ल में समेट लूँ

चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी

ज़िंदगी की यही कहानी है

चाँदनी पांडे

लखनऊ में फिर हुई आरास्ता बज़्म-ए-सुख़न

चकबस्त ब्रिज नारायण

दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे

चकबस्त ब्रिज नारायण

अब मुलाक़ात कहाँ शीशे से पैमाने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

किस ने कहा किसी का कहा तुम किया करो

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

आज मक़्तल में ख़बर है कि चराग़ाँ होगा

बेताब सूरी

पढ़े जाओ 'बेख़ुद' ग़ज़ल पर ग़ज़ल

बेख़ुद देहलवी

अब किसी बात का तालिब दिल-ए-नाशाद नहीं

बेख़ुद देहलवी

मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखता हूँ

बेकल उत्साही

तरहदार कहाँ से लाऊँ

बेबाक भोजपुरी

मेरे रोने पर किसी की चश्म गिर्यां हाए हाए

बासित भोपाली

ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना

बशीर बद्र

वो माथा का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे

बशीर बद्र

फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है

बशीर बद्र

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो

बशीर बद्र

वो सूरत गर्द-ए-ग़म में छुप गई हो

बशीर बद्र

वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे

बशीर बद्र

शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ

बशीर बद्र

पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है

बशीर बद्र

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