ग़ज़ल Poetry (page 21)

मिरी ज़िंदगी भी मिरी नहीं ये हज़ार ख़ानों में बट गई

बशीर बद्र

मिरी ज़बाँ पे नए ज़ाइक़ों के फल लिख दे

बशीर बद्र

मिरी ग़ज़ल की तरह उस की भी हुकूमत है

बशीर बद्र

मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे

बशीर बद्र

कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ

बशीर बद्र

ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में

बशीर बद्र

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो

बशीर बद्र

जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था

बशीर बद्र

घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे

बशीर बद्र

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है

बशीर बद्र

दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में

बशीर बद्र

अज़्मतें सब तिरी ख़ुदाई की

बशीर बद्र

अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ

बशीर बद्र

आहन में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी

बशीर बद्र

ये हुस्न है झरनों में न है बाद-ए-चमन में

बशर नवाज़

इश्क़ में बू है किबरियाई की

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

शोर-ए-दरिया है कहानी मेरी

बाक़र नक़वी

बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है

बाक़र मेहदी

औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे

बाक़र मेहदी

कितना भी मुस्कुराइए दिल है मगर बुझा बुझा

बनो ताहिरा सईद

तिश्नगी-ए-लब पे हम अक्स-ए-आब लिक्खेंगे

बख़्श लाइलपूरी

कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है

बहराम जी

हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे

बहराम जी

दुनिया में इबादत को तिरी आए हुए हैं

बहराम जी

बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की

बहराम जी

'ज़फ़र' बदल के रदीफ़ और तू ग़ज़ल वो सुना

ज़फ़र

याँ ख़ाक का बिस्तर है गले में कफ़नी है

ज़फ़र

क़ारूँ उठा के सर पे सुना गंज ले चला

ज़फ़र

मर गए ऐ वाह उन की नाज़-बरदारी में हम

ज़फ़र

जिगर के टुकड़े हुए जल के दिल कबाब हुआ

ज़फ़र

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