पढ़े जाओ 'बेख़ुद' ग़ज़ल पर ग़ज़ल
वो बुत बन गए हैं सुने जाएँगे
Allama Iqbal
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ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले
अपने जल्वे का वो ख़ुद आप तमाशाई है
'बेख़ुद' ज़रूर रात को सोए हो पी के तुम
राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझे
जो तुझे इम्तिहान देता है
रक़ीबों के लिए अच्छा ठिकाना हो गया पैदा
कुछ तरह रिंदों ने दी कुछ मोहतसिब भी दब गया
अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को
नामा-बर ये तो कही बात पते की तू ने
नज़र कहीं है मुख़ातब किसी से हैं दिल में
मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद
ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है