कुछ तरह रिंदों ने दी कुछ मोहतसिब भी दब गया
छेड़ आपस में सर-ए-बाज़ार हो कर रह गई
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
Wasi Shah
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दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें
ऐ शैख़ आदमी के भी दर्जे हैं मुख़्तलिफ़
ग़म में डूबे ही रहे दम न हमारा निकला
जो तुझे इम्तिहान देता है
दिल हुआ जान हुई उन की भला क्या क़ीमत
न क्यूँ-कर नज़्र दिल होता न क्यूँ-कर दम मिरा जाता
टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम
कब तक करेंगे जब्र दिल-ए-ना-सुबूर पर
इस जबीन-ए-अरक़-अफ़्शाँ पे न चुनिए अफ़्शाँ
उन्हें तो सितम का मज़ा पड़ गया है
उठे तिरी महफ़िल से तो किस काम के उठ्ठे
चलने की नहीं आज कोई घात किसी की