इस जबीन-ए-अरक़-अफ़्शाँ पे न चुनिए अफ़्शाँ
ये सितारे कहीं मिल जाएँ न सय्यारों में
Jaun Eliya
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Habib Jalib
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हूरों से न होगी ये मुदारात किसी की
मौत आ रही है वादे पे या आ रहे हो तुम
न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं
जताए जाते हैं एहसान भी सता के मुझे
क्यूँ कह के दिल का हाल उसे बद-गुमाँ करूँ
'बेख़ुद' तो मर मिटे जो कहा उस ने नाज़ से
जो तुझे इम्तिहान देता है
महफ़िल वही मकान वही आदमी वही
वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी
दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया
बनी थी दिल पे कुछ ऐसी की इज़्तिराब न था
दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर