इजाज़त माँगती है दुख़्त-ए-रज़ महफ़िल में आने की
मज़ा हो शैख़-साहिब कह उठें बे-इख़्तियार आए
Anwar Masood
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वफ़ा का नाम तो पीछे लिया है
न देखना कभी आईना भूल कर देखो
दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर
तुम्हारी याद मेरा दिल ये दिनों चलते पुर्ज़े हैं
सौदा-ए-इश्क़ और है वहशत कुछ और शय
जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़बान में
क्यूँ कह के दिल का हाल उसे बद-गुमाँ करूँ
बेचने आए कोई क्या दिल-ए-शैदा ले कर
बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो
क्या कह दिया ये आप ने चुपके से कान में
झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं
न देखे होंगे रिंद-ए-ला-उबाली तुम ने 'बेख़ुद' से