झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं

झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं

बात सुनते नहीं दुश्नाम दिए जाते हैं

तिरछी नज़रों से किए उस ने बहुत दिल ज़ख़्मी

तीर टेढ़े मगर काम दिए जाते हैं

कह गया ये भी कोई रूठ के जाने वाला

हम तुझे मौत का पैग़ाम दिए जाते हैं

पासबान जाग उठें वो तो उन्हें दे देना

लिख के काग़ज़ पे ये इक नाम दिए जाते हैं

आप के लुत्फ़-ओ-इनायत का यही है बदला

ग़म लिए जाते हैं आराम दिए जाते हैं

दिल हुआ जान हुई उन की भला क्या क़ीमत

ऐसी चीज़ों के कहीं दाम दिए जाते हैं

तीर-ए-क़ातिल को कलेजे से लगा रक्खा है

हम तो दुश्मन को भी आराम दिए जाते हैं

काम आ जाएगा दुश्मन की मोहब्बत में कभी

एहतियातन दिल-ए-नाकाम दिए जाते हैं

अब तो खुल खेले वो 'बेख़ुद' से ख़ुदा ख़ैर करे

अब तो ख़ुद भर के उसे जाम दिए जाते हैं

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