'बेख़ुद' तो मर मिटे जो कहा उस ने नाज़ से
इक शेर आ गया है हमें आप का पसंद
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हमें इस्लाम उसे इतना तअल्लुक़ है अभी बाक़ी
आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को
आइना देख के ख़ुर्शीद पे करते हैं नज़र
तेशे से कोई काम न फ़रहाद से हुआ
बज़्म-ए-दुश्मन में बुलाते हो ये क्या करते हो
रात भर गर्दिश थी उन के पासबानों की तरह
अपने जल्वे का वो ख़ुद आप तमाशाई है
दिल चुरा कर ले गया था कोई शख़्स
न देखना कभी आईना भूल कर देखो
क्यूँ कह के दिल का हाल उसे बद-गुमाँ करूँ
न देखे होंगे रिंद-ए-ला-उबाली तुम ने 'बेख़ुद' से
जो तुझे इम्तिहान देता है