आइना देख के ख़ुर्शीद पे करते हैं नज़र
फिर छुपा लेते हैं वो चेहरा-ए-अनवर अपना
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शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था
तुम्हारे हाथ ख़ाली जेब ख़ाली ज़ुल्फ़ ख़ाली थी
जताए जाते हैं एहसान भी सता के मुझे
वफ़ा का नाम तो पीछे लिया है
ऐ शैख़ आदमी के भी दर्जे हैं मुख़्तलिफ़
अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को
चश्म-ए-बद-दूर वो भोले भी हैं नादाँ भी हैं
इजाज़त माँगती है दुख़्त-ए-रज़ महफ़िल में आने की
दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं
'बेख़ुद' तो मर मिटे जो कहा उस ने नाज़ से
दिल है मुश्ताक़ जुदा आँख तलबगार जुदा
तुम्हारी याद मेरा दिल ये दिनों चलते पुर्ज़े हैं