चश्म-ए-बद-दूर वो भोले भी हैं नादाँ भी हैं
ज़ुल्म भी मुझ पे कभी सोच-समझ कर न हुआ
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सुन के सारी दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
सौदा-ए-इश्क़ और है वहशत कुछ और शय
कब तक करेंगे जब्र दिल-ए-ना-सुबूर पर
ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले
बोले वो मुस्कुरा के बहुत इल्तिजा के ब'अद
सब्र आता है जुदाई में न ख़्वाब आता है
झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं
आप को रंज हुआ आप के दुश्मन रोए
वफ़ा का नाम तो पीछे लिया है
झूटा जो कहा मैं ने तो शर्मा के वो बोले
कोई इस तरह से मिलने का मज़ा मिलता है