वफ़ा का नाम तो पीछे लिया है
कहा था तुम ने इस से पेशतर क्या
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अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को
बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू हों
वो सुन कर हूर की तारीफ़ पर्दे से निकल आए
'बेख़ुद' तो मर मिटे जो कहा उस ने नाज़ से
ज़माना हम ने ज़ालिम छान मारा
आप हैं बे-गुनाह क्या कहना
हो लिए जिस के हो लिए 'बेख़ुद'
आइना देख कर वो ये समझे
पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी
वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना
अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था
दिल है मुश्ताक़ जुदा आँख तलबगार जुदा