उन्हें तो सितम का मज़ा पड़ गया है
कहाँ का तजाहुल कहाँ का तग़ाफ़ुल
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रात भर गर्दिश थी उन के पासबानों की तरह
क्या मिले आप की महफ़िल में भला एक से एक
हो लिए जिस के हो लिए 'बेख़ुद'
लुत्फ़ से मतलब न कुछ मेरे सताने से ग़रज़
अब किसी बात का तालिब दिल-ए-नाशाद नहीं
ग़म में डूबे ही रहे दम न हमारा निकला
दिल है मुश्ताक़ जुदा आँख तलबगार जुदा
भूले से कहा मान भी लेते हैं किसी का
हमें इस्लाम उसे इतना तअल्लुक़ है अभी बाक़ी
सुन के सारी दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म
दिल हुआ जान हुई उन की भला क्या क़ीमत
न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं