ग़म में डूबे ही रहे दम न हमारा निकला
बहर-ए-हस्ती का बहुत दूर किनारा निकला
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(807) Peoples Rate This
सख़्त-जाँ हूँ मुझे इक वार से क्या होता है
मुँह में वाइज़ के भी भर आता है पानी अक्सर
दिल हुआ जान हुई उन की भला क्या क़ीमत
महफ़िल वही मकान वही आदमी वही
दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर
भूले से कहा मान भी लेते हैं किसी का
कुछ तरह रिंदों ने दी कुछ मोहतसिब भी दब गया
अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था
क़यामत है जो ऐसे पर दिल-ए-उम्मीद-वार आए
मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
हज़रत-ए-दिल ये इश्क़ है दर्द से कसमसाए क्यूँ