दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें
जो हमारा न हुआ कब वो तुम्हारा होगा
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महफ़िल वही मकान वही आदमी वही
वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना
न अरमाँ बन के आते हैं न हसरत बन के आते हैं
'बेख़ुद' ज़रूर रात को सोए हो पी के तुम
अदू को देख के जब वो इधर को देखते हैं
दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो
जो तमाशा नज़र आया उसे देखा समझा
हो के मजबूर आह करता हूँ
बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो
दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं
रात भर गर्दिश थी उन के पासबानों की तरह
तुम हमारे दिल-ए-शैदा को नहीं जानते क्या