दिल मोहब्बत से भर गया 'बेख़ुद'
अब किसी पर फ़िदा नहीं होता
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हमें पीने से मतलब है जगह की क़ैद क्या 'बेख़ुद'
आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को
हैं निकहत-ए-गुल बाग़ में ऐ बाद-ए-सबा हम
दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो
वफ़ा का नाम तो पीछे लिया है
हो लिए जिस के हो लिए 'बेख़ुद'
जो तमाशा नज़र आया उसे देखा समझा
तीर-ए-क़ातिल को कलेजे से लगा रक्खा है
दिल चुरा कर ले गया था कोई शख़्स
दिल हुआ जान हुई उन की भला क्या क़ीमत
बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो
जताए जाते हैं एहसान भी सता के मुझे