दिल चुरा कर ले गया था कोई शख़्स
पूछने से फ़ाएदा, था कोई शख़्स
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ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले
न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं
वफ़ा का नाम तो पीछे लिया है
इजाज़त माँगती है दुख़्त-ए-रज़ महफ़िल में आने की
अदू को देख के जब वो इधर को देखते हैं
माशूक़ हमें बात का पूरा नहीं मिलता
आप को रंज हुआ आप के दुश्मन रोए
तुम हमारे दिल-ए-शैदा को नहीं जानते क्या
कब तक करेंगे जब्र दिल-ए-ना-सुबूर पर
क्या मिले आप की महफ़िल में भला एक से एक
झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं
'बेख़ुद' तो मर मिटे जो कहा उस ने नाज़ से