बात करने की शब-ए-वस्ल इजाज़त दे दो
मुझ को दम भर के लिए ग़ैर की क़िस्मत दे दो
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कुछ तरह रिंदों ने दी कुछ मोहतसिब भी दब गया
क्या मिले आप की महफ़िल में भला एक से एक
अपने जल्वे का वो ख़ुद आप तमाशाई है
शौक़ अपना आप मैं अपनी ज़बाँ से क्यूँ कहूँ
वो कुछ मुस्कुराना वो कुछ झेंप जाना
दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर
आइना देख के ख़ुर्शीद पे करते हैं नज़र
नामा-बर ये तो कही बात पते की तू ने
झूटा जो कहा मैं ने तो शर्मा के वो बोले
जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़बान में
आप हों हम हों मय-ए-नाब हो तन्हाई हो
झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं