नामा-बर ये तो कही बात पते की तू ने
ज़िक्र उस बज़्म में रहता तो है अक्सर अपना
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(923) Peoples Rate This
आप शर्मा के न फ़रमाएँ हमें याद नहीं
दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो
दी क़सम वस्ल में उस बुत को ख़ुदा की तो कहा
इजाज़त माँगती है दुख़्त-ए-रज़ महफ़िल में आने की
मेरा हर शेर है इक राज़-ए-हक़ीक़त 'बेख़ुद'
क़यामत है जो ऐसे पर दिल-ए-उम्मीद-वार आए
दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर
आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को
अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था
टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम
और साक़ी पिला अभी क्या है
कुछ तरह रिंदों ने दी कुछ मोहतसिब भी दब गया