मेरा हर शेर है इक राज़-ए-हक़ीक़त 'बेख़ुद'
मैं हूँ उर्दू का 'नज़ीरी' मुझे तू क्या समझा
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दिल चुरा ले गई दुज़्दीदा-नज़र देख लिया
दिल मोहब्बत से भर गया 'बेख़ुद'
दिल चुरा कर ले गया था कोई शख़्स
जताए जाते हैं एहसान भी सता के मुझे
दिल तो लेते हो मगर ये भी रहे याद तुम्हें
बनी थी दिल पे कुछ ऐसी की इज़्तिराब न था
भूले से कहा मान भी लेते हैं किसी का
राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझे
तकिया हटता नहीं पहलू से ये क्या है 'बेख़ुद'
सख़्त-जाँ हूँ मुझे इक वार से क्या होता है
दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो