आप हों हम हों मय-ए-नाब हो तन्हाई हो
दिल में रह रह के ये अरमान चले आते हैं
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बनी थी दिल पे कुछ ऐसी की इज़्तिराब न था
नज़र कहीं है मुख़ातब किसी से हैं दिल में
बेवफ़ा कहने से क्या वो बेवफ़ा हो जाएगा
टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम
पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी
आइना देख कर वो ये समझे
रिंद-मशरब कोई 'बेख़ुद' सा न होगा वल्लाह
आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को
क़यामत है तिरी उठती जवानी
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
ज़माना हम ने ज़ालिम छान मारा
सख़्त-जाँ हूँ मुझे इक वार से क्या होता है