अपने जल्वे का वो ख़ुद आप तमाशाई है
आईने उस ने लगा रक्खे हैं दीवारों में
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दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं
आशिक़ हैं मगर इश्क़ नुमायाँ नहीं रखते
कोई इस तरह से मिलने का मज़ा मिलता है
दिल मोहब्बत से भर गया 'बेख़ुद'
इजाज़त माँगती है दुख़्त-ए-रज़ महफ़िल में आने की
'बेख़ुद' तो मर मिटे जो कहा उस ने नाज़ से
क़यामत है जो ऐसे पर दिल-ए-उम्मीद-वार आए
हो लिए जिस के हो लिए 'बेख़ुद'
न सही आप हमारे जो मुक़द्दर में नहीं
अब आप कोई काम सिखा दीजिए हम को
चश्म-ए-बद-दूर वो भोले भी हैं नादाँ भी हैं
भूले से कहा मान भी लेते हैं किसी का