ऐ शैख़ आदमी के भी दर्जे हैं मुख़्तलिफ़
इंसान हैं ज़रूर मगर वाजिबी से आप
Parveen Shakir
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Faiz Ahmad Faiz
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Jaun Eliya
Allama Iqbal
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तुम्हें हम चाहते तो हैं मगर क्या
तीर-ए-क़ातिल को कलेजे से लगा रक्खा है
वो सुन कर हूर की तारीफ़ पर्दे से निकल आए
'बेख़ुद' तो मर मिटे जो कहा उस ने नाज़ से
नौ-गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत हूँ वफ़ा मुझ में कहाँ
बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू हों
आप हैं बे-गुनाह क्या कहना
आप शर्मा के न फ़रमाएँ हमें याद नहीं
इस जबीन-ए-अरक़-अफ़्शाँ पे न चुनिए अफ़्शाँ
हिजाब दूर तुम्हारा शबाब कर देगा
झूट सच आप तो इल्ज़ाम दिए जाते हैं
इजाज़त माँगती है दुख़्त-ए-रज़ महफ़िल में आने की