महफ़िल वही मकान वही आदमी वही
या हम नए हैं या तिरी आदत बदल गई
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(869) Peoples Rate This
हूरों से न होगी ये मुदारात किसी की
पढ़े जाओ 'बेख़ुद' ग़ज़ल पर ग़ज़ल
पछताओगे फिर हम से शरारत नहीं अच्छी
न अरमाँ बन के आते हैं न हसरत बन के आते हैं
बनी थी दिल पे कुछ ऐसी की इज़्तिराब न था
हमें पीने से मतलब है जगह की क़ैद क्या 'बेख़ुद'
तुम्हारी याद मेरा दिल ये दिनों चलते पुर्ज़े हैं
ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है
रक़ीबों के लिए अच्छा ठिकाना हो गया पैदा
दिल में फिर वस्ल के अरमान चले आते हैं
बज़्म-ए-दुश्मन में बुलाते हो ये क्या करते हो
क़यामत है जो ऐसे पर दिल-ए-उम्मीद-वार आए