हूरों से न होगी ये मुदारात किसी की
याद आएगी जन्नत में मुलाक़ात किसी की
Gulzar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Rahat Indori
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(860) Peoples Rate This
क्या कह दिया ये आप ने चुपके से कान में
चश्म-ए-बद-दूर वो भोले भी हैं नादाँ भी हैं
क़यामत है तिरी उठती जवानी
सख़्त-जाँ हूँ मुझे इक वार से क्या होता है
ज़ाहिदों से न बनी हश्र के दिन भी या-रब
तुम हमारे दिल-ए-शैदा को नहीं जानते क्या
आप को रंज हुआ आप के दुश्मन रोए
इस जबीन-ए-अरक़-अफ़्शाँ पे न चुनिए अफ़्शाँ
वफ़ा का नाम तो पीछे लिया है
वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी
इजाज़त माँगती है दुख़्त-ए-रज़ महफ़िल में आने की
सौदा-ए-इश्क़ और है वहशत कुछ और शय