न देखे होंगे रिंद-ए-ला-उबाली तुम ने 'बेख़ुद' से
कि ऐसे लोग अब आँखों से ओझल होते जाते हैं
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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आप हों हम हों मय-ए-नाब हो तन्हाई हो
बात वो कहिए कि जिस बात के सौ पहलू हों
टूटे पड़ते हैं ये हैं किस के ख़रीदार तमाम
क्यूँ कह के दिल का हाल उसे बद-गुमाँ करूँ
अदू के ताकने को तुम इधर देखो उधर देखो
ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है
मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद
अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी
आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को
दे मोहब्बत तो मोहब्बत में असर पैदा कर
तिरी तेग़ का लाल कर दूँगा मुँह
क़यामत है तिरी उठती जवानी