सजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो
''बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है''
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नज़्म
यास
हाँ नुक्ता-वरो लाओ लब-ओ-दिल की गवाही
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
शैख़ साहब से रस्म-ओ-राह न की
दस्त-ए-तह-ए-संग-आमदा
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
ज़िंदाँ की एक सुब्ह
हुस्न और मौत
आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल
वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं
न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है