गरीबां Poetry (page 8)

ख़ुदा जाने गिरेबाँ किस के हैं और हाथ किस के हैं

इक़बाल नवेद

अगरचे पार काग़ज़ की कभी कश्ती नहीं जाती

इक़बाल नवेद

मर्ग-ए-गुल से पेशतर

इक़बाल हैदर

बुझ गई दिल की किरन आईना-ए-जाँ टूटा

इक़बाल हैदर

ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पिए जाते हैं

इक़बाल अज़ीम

मुझ पर निगाह-ए-गर्दिश-ए-दौराँ नहीं रही

इक़बाल आबिदी

काम आ गई है गर्दिश-ए-दौराँ कभी कभी

इक़बाल आबिदी

उस का बदन भी चाहिए और दिल भी चाहिए

इमरान-उल-हक़ चौहान

ढूँडिए दिन रात हफ़्तों और महीनों के बटन

इमरान शमशाद

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

हम-ज़ाद है ग़म अपना शादाँ किसे कहते हैं

इमदाद अली बहर

मिरा सीना है मशरिक़ आफ़्ताब-ए-दाग़-ए-हिज्राँ का

इमाम बख़्श नासिख़

स्कैप-इज़्म

इलियास बाबर आवान

ख़िरद को ख़ाना-ए-दिल का निगह-बाँ कर दिया हम ने

इज्तिबा रिज़वी

जुनूँ का रंग भी हो शोला-ए-नुमू का भी हो

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कुछ भी तो अपने पास नहीं जुज़-मता-ए-दिल

इब्न-ए-सफ़ी

झुलसी सी इक बस्ती में

इब्न-ए-इंशा

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए

हिमायत अली शाएर

इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और

हिमायत अली शाएर

अपना अंदाज़-ए-जुनूँ सब से जुदा रखता हूँ मैं

हिमायत अली शाएर

गुज़रा अपना पस-ए-मुर्दन ही सही

हातिम अली मेहर

छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम

हातिम अली मेहर

न छुटा हाथ से यक लहज़ा गरेबाँ मेरा

हसरत अज़ीमाबादी

इश्क़ में गुल के जो नालाँ बुलबुल-ए-ग़मनाक है

हसरत अज़ीमाबादी

निदा-ए-तख़्लीक़

हसन नईम

चश्म-ए-जुनूँ में हुस्न-ए-सलासिल है बे-क़रार

हसन बख़्त

कर के संग-ए-ग़म-ए-हस्ती के हवाले मुझ को

हसन अख्तर जलील

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