हम-ज़ाद है ग़म अपना शादाँ किसे कहते हैं

हम-ज़ाद है ग़म अपना शादाँ किसे कहते हैं

वाक़िफ़ नहीं इशरत का सामाँ किसे कहते हैं

बीमार-ए-मोहब्बत हैं हम तारिक-ए-राहत हैं

ना-वाक़िफ़-ए-सेहत हैं दरमाँ किसे कहते हैं

मुद्दत से ये सामाँ है तन शो'ला-ए-उर्यां है

क्या चीज़ गरेबाँ है दामाँ किसे कहते हैं

माथे पे पसीना है क़ुदरत का तमाशा है

तारों की झमक क्या है अफ़्शाँ किसे कहते हैं

दिल दे के जफ़ा सहिए आफ़त में फँसे रहिए

दाना जो हमें कहिए नादाँ किसे कहते हैं

जब यार ने देखा है इक ज़ख़्म लगाया है

सौ तीरों का दस्ता है मिज़्गाँ किसे कहते हैं

उस तुर्क की पलकों से महफ़ूज़ ख़ुदा रक्खे

बर कटते हैं तीरों की पैकाँ किसे कहते हैं

दिल की जो ज़राअत है ख़ार-ओ-ख़स-ए-ज़हमत से

इक क़तरे की हसरत है बाराँ किसे कहते हैं

सच कहते हैं ये ज़ीरक है इश्क़-ए-जुनूँ बे-शक

वाक़िफ़ न थे हम गुल तक ज़िंदाँ किसे कहते हैं

हर-वक़्त है बे-ज़ारी हर दम है जफ़ाकारी

दिल-जूई-ओ-दिलदारी-ए-जानाँ किसे कहते हैं

रुख़्सार का शैदा हूँ क्या गुल को समझता हूँ

महव-ए-ख़त-ए-ज़ेबा हूँ रैहाँ किसे कहते हैं

मुद्दत से है दिल बरहम सोहबत से नहीं महरम

आज़ाद हैं घर से हम मेहमाँ किसे कहते हैं

जाते हैं कभी दरगाह शीवाले में भी है राह

मज़हब से नहीं आगाह ईमाँ किसे कहते हैं

हैदर से तवल्ला है रहमत का भरोसा है

ऐ 'बहर' ख़ता क्या है इस्याँ किसे कहते हैं

(897) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Ham-zad Hai Gham Apna Shadan Kise Kahte Hain In Hindi By Famous Poet Imdad Ali Bahr. Ham-zad Hai Gham Apna Shadan Kise Kahte Hain is written by Imdad Ali Bahr. Complete Poem Ham-zad Hai Gham Apna Shadan Kise Kahte Hain in Hindi by Imdad Ali Bahr. Download free Ham-zad Hai Gham Apna Shadan Kise Kahte Hain Poem for Youth in PDF. Ham-zad Hai Gham Apna Shadan Kise Kahte Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Ham-zad Hai Gham Apna Shadan Kise Kahte Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.