क्या क्या न मुझ से संग-दिली दिलबरों ने की
पत्थर पड़ें समझ पे न समझा किसी तरह
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ख़ूब-रूयान-ए-जहाँ चाँद की तनवीरें हैं
हम-ज़ाद है ग़म अपना शादाँ किसे कहते हैं
जब कि सर पर वबाल आता है
इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ
मेरे आगे तज़्किरा माशूक़-ओ-आशिक़ का बुरा
मैं उस बुत का वस्ल ऐ ख़ुदा चाहता हूँ
जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए
अफ़्सोस उम्र कट गई रंज-ओ-मलाल में
चूर सदमों से हो बईद नहीं
आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब
ख़ुदा-परस्त हुए न हम बुत-परस्त हुए
सैर उस सब्ज़ा-ए-आरिज़ की है दुश्वार बहुत