गरीबां Poetry (page 16)

दुनिया से तन को ढाँप क़यामत से जान को

अहमद जावेद

दिल आईना है मगर इक निगाह करने को

अहमद जावेद

चाक करते हैं गरेबाँ इस फ़रावानी से हम

अहमद जावेद

कर गए कूच कहाँ

अहमद फ़राज़

ये शहर सेहर-ज़दा है सदा किसी की नहीं

अहमद फ़राज़

वफ़ा के बाब में इल्ज़ाम-ए-आशिक़ी न लिया

अहमद फ़राज़

था अबस तर्क-ए-तअल्लुक़ का इरादा यूँ भी

अहमद फ़राज़

सू-ए-फ़लक न जानिब-ए-महताब देखना

अहमद फ़राज़

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ

अहमद फ़राज़

दिल था कि ग़म-ए-जाँ था

आग़ाज़ बरनी

क्या ख़बर थी राज़-ए-दिल अपना अयाँ हो जाएगा

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है

आग़ा हज्जू शरफ़

ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की

आग़ा हज्जू शरफ़

जो सामना भी कभी यार-ए-ख़ूब-रू से हुआ

आग़ा हज्जू शरफ़

दरपेश अजल है गंज-ए-शहीदाँ ख़रिदिए

आग़ा हज्जू शरफ़

लैला सर-ब-गरेबाँ है मजनूँ सा आशिक़-ए-ज़ार कहाँ

अफ़ज़ल परवेज़

आजिज़ हूँ तिरे हाथ से क्या काम करूँ मैं

आफ़ताब शाह आलम सानी

तुम जो सियाने हो गुन वाले हो

अदा जाफ़री

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

वहीं से हद मिली है जा पहुँचता कू-ए-जानाँ तक

अब्र अहसनी गनौरी

फटा हुआ जो गरेबाँ दिखाई देता है

आबिद वदूद

अदब में मुद्दई-ए-फ़न तो बे-शुमार मिले

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

गरेबाँ चाक है हाथों में ज़ालिम तेरा दामाँ है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

दामन की फ़िक्र है न गरेबाँ की फ़िक्र है

अब्दुल मतीन नियाज़

ऐ साक़ी-ए-मह-वश ग़म-ए-दौराँ नहीं उठता

अब्दुल हमीद अदम

चुप-चाप गुज़र जाओ

अब्बास अतहर

नज़्अ' की सख़्ती बढ़ी उन को पशेमाँ देख कर

अब्बास अली ख़ान बेखुद

जुनूँ के हाथ से है इन दिनों गरेबाँ तंग

आग़ा अकबराबादी

पाँव फिर होवेंगे और दश्त-ए-मुग़ीलाँ होगा

आग़ा अकबराबादी

ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा

आग़ा अकबराबादी

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