गुलशन Poetry (page 19)

जिन को हर हालत में ख़ुश और शादमाँ पाता हूँ मैं

अफ़सर मेरठी

बहार आएगी गुलशन में तो दार-ओ-गीर भी होगी

अफ़सर माहपुरी

जिगर को ख़ून किए दिल को बे-क़रार अभी

अफ़रोज़ आलम

बरसों के जैसे लम्हों में ये रात गुज़रती जाएगी

अफ़ीफ़ सिराज

क्या जानिए किस बात पे मग़रूर रही हूँ

अदा जाफ़री

क़फ़स से छुटने पे शाद थे हम कि लज़्ज़त-ए-ज़िंदगी मिलेगी

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

रता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर लावबाली का

आबरू शाह मुबारक

फ़जर उठ ख़्वाब सीं गुलशन में जब तुम ने मली अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

श्याम गोकुल न जाना कि राधा का जी अब न बंसी की तानों पे लहराएगा

आबिद हशरी

कुछ न किया अरबाब-ए-जुनूँ ने फिर भी इतना काम किया

अब्दुर रऊफ़ उरूज

न पहुँचे छूट कर कुंज-ए-क़फ़स से हम नशेमन तक

अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी

याद यूँ होश गँवा बैठी है

अब्दुल्लाह जावेद

मस्त अँखियाँ का देख दुम्बाला

अब्दुल वहाब यकरू

सुब्ह सफ़र और शाम सफ़र

अब्दुल मन्नान तरज़ी

जब भी गुलशन में चली ठंडी हवा

अब्दुल मन्नान तरज़ी

उस से उम्मीद-ए-वफ़ा ऐ दिल-ए-नाशाद न कर

अब्दुल अलीम आसि

बद-सोहबतों को छोड़ शरीफ़ों के साथ घूम

अब्दुल अहद साज़

ख़याल-ए-यार का जल्वा यहाँ भी था वहाँ भी था

आज़िम कोहली

एहसास के सूखे पत्ते भी अरमानों की चिंगारी भी

आज़िम कोहली

रविश उस चाल में तलवार की है

आसी ग़ाज़ीपुरी

इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ

आसी ग़ाज़ीपुरी

हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है

आल-ए-अहमद सूरूर

नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं

आग़ा अकबराबादी

जीते-जी के आश्ना हैं फिर किसी का कौन है

आग़ा अकबराबादी

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