चलो चलें Poetry (page 16)

क़यामत है जो ऐसे पर दिल-ए-उम्मीद-वार आए

बेख़ुद देहलवी

क्यूँ कह के दिल का हाल उसे बद-गुमाँ करूँ

बेख़ुद देहलवी

साथ साथ अहल-ए-तमन्ना का वो मुज़्तर जाना

बेखुद बदायुनी

नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा

बेकल उत्साही

होना ही क्या ज़रूर थे ये दो-जहाँ हैं क्यूँ

बहज़ाद लखनवी

इश्क़-ए-सितम-परस्त क्या हुस्न-ए-सितम-शिआ'र क्या

बासित भोपाली

बादल है और फूल खिले हैं सभी तरफ़

बासिर सुल्तान काज़मी

ज़ाहिर मिरी शिकस्त के आसार भी नहीं

बशीर सैफ़ी

किसे ख़बर है मैं दिल से कि जाँ से गुज़रूँगा

बशीर सैफ़ी

चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है

बशीर महताब

मिरे बदन में छुपी आग को हवा देगा

बशीर फ़ारूक़ी

तख़लीक़-ए-काएनात दिगर कर सके तो कर

बशीर फ़ारूक़

ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है

बशीर बद्र

सर पे इक साएबाँ तो रहने दे

बशीर मुंज़िर

करोगे याद तो हर बात याद आएगी

बशर नवाज़

क्या पता हम को मिला है अपना

बाक़ी सिद्दीक़ी

दाग़-ए-दिल हम को याद आने लगे

बाक़ी सिद्दीक़ी

सज़ा

बाक़र मेहदी

और कोई जो सुने ख़ून के आँसू रोए

बाक़र मेहदी

क्यूँकर न ख़ाकसार रहें अहल-ए-कीं से दूर

ज़फ़र

दरीदा-पैरहनों में शुमार हम भी हैं

अज़्म शाकरी

जो यहाँ हाज़िर है वो मिस्ल-ए-गुमाँ मौजूद है

अज़्म बहज़ाद

करो तलाश हद-ए-आसमाँ मिलने न मिले

अज़ीज़ तमन्नाई

ग़रीब शहर

अज़ीज़ क़ैसी

कंफ़ेशन

अज़ीज़ क़ैसी

बैन-उल-अदमैन

अज़ीज़ क़ैसी

वालिहाना मिरे दिल में मिरी जाँ में आ जा

अज़ीज़ क़ैसी

ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं

अज़ीज़ लखनवी

शोख़ी से कश्मकश नहीं अच्छी हिजाब की

अज़ीज़ हैदराबादी

ग़लत-बयाँ ये फ़ज़ा महर ओ कीं दरोग़ दरोग़

अज़ीज़ हामिद मदनी

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