चलो चलें Poetry (page 18)

उस की तो एक दिल-लगी अपना बना के छोड़ दे

आरज़ू लखनवी

सपेदी रंग-ए-जहाँ में नहीं मिलाता हूँ

अरशद जमाल हश्मी

साफ़ बातों से हो गया मा'लूम

अरशद अली ख़ान क़लक़

इश्क़ मरहून-ए-हिकायात-ओ-गुमाँ भी होगा

अरशद अब्दुल हमीद

मेहर ओ महताब को मेरे ही निशाँ जानती है

अरशद अब्दुल हमीद

इश्क़ मरहून-ए-हिकायात-ओ-गुमाँ भी होगा

अरशद अब्दुल हमीद

मेरे प्यारे वतन

अर्श मलसियानी

न हर्फ़-ए-शौक़ न तर्ज़-ए-बयाँ से आती है

अरमान नज्मी

मुझ को वैसा ख़ुदा मिला बिल्कुल

आरिफ़ शफ़ीक़

तू ज़मीं पर है कहकशाँ जैसा

आरिफ़ शफ़ीक़

दोज़ख़ भी क्या गुमान है जन्नत भी है फ़रेब

आरिफ़ शफ़ीक़

ज़िंदगी यूँ करें बसर कब तक

आरिफ़ इशतियाक़

पियो कि मा-हसल-ए-होश किस ने देखा है

अनवर शऊर

फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था

अनवर शऊर

चला मैं जानिब-ए-मंज़िल तो ये हुआ मालूम

अनवर सदीद

हद-ए-नज़र से मिरा आसमाँ है पोशीदा

अनवर सदीद

हर साँस में ख़ुद अपने न होने का गुमाँ था

अनवर साबरी

यहाँ काँप जाते हैं फ़लसफ़े ये बड़ा अजीब मक़ाम है

अनवर मिर्ज़ापुरी

दुनिया भी अजब क़ाफ़िला-ए-तिश्ना-लबाँ है

अनवर मसूद

मोहब्बत हो तो बर्क़-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो

अनवर देहलवी

देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था

अनवर देहलवी

आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ

अनवर देहलवी

शहर-दर-शहर फ़ज़ाओं में धुआँ है अब के

अनवर महमूद खालिद

हयात-ए-राएगाँ है और मैं हूँ

अंजुम सिद्दीक़ी

है जो तासीर सी फ़ुग़ाँ में अभी

अंजुम रूमानी

दिल भर आया फिर भी राज़-ए-दिल छुपाना ही पड़ा

अंजुम मानपुरी

मिरे जुनूँ को हवस में शुमार कर लेगा

अंजुम ख़लीक़

जब तक फ़सील-ए-जिस्म का दर खुल न जाएगा

अंजुम ख़लीक़

हर शे'र से मेरे तिरा पैकर निकल आए

अंजुम ख़लीक़

क्या कहिए रू-ए-हुस्न पे आलम नक़ाब का

अंदलीब शादानी

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