हाथ Poetry (page 43)

जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा

हातिम अली मेहर

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

हातिम अली मेहर

गरेबाँ हाथ में है पाँव में सहरा का दामाँ है

हातिम अली मेहर

आलम-ए-हैरत का देखो ये तमाशा एक और

हातिम अली मेहर

पैरव-ए-मस्लक-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा होते हैं

हसरत मोहानी

मुक़र्रर कुछ न कुछ इस में रक़ीबों की भी साज़िश है

हसरत मोहानी

हाइल थी बीच में जो रज़ाई तमाम शब

हसरत मोहानी

न छुटा हाथ से यक लहज़ा गरेबाँ मेरा

हसरत अज़ीमाबादी

है याद तुझ से मेरा वो शर्ह-ए-हाल देना

हसरत अज़ीमाबादी

अज़ीज़ो तुम न कुछ उस को कहो हुआ सो हुआ

हसरत अज़ीमाबादी

और थोड़ा सा बिखर जाऊँ यही ठानी है

हसनैन आक़िब

गरेबाँ चाक, धुआँ, जाम, हाथ में सिगरेट

हाशिम रज़ा जलालपुरी

विसाल-ओ-हिज्र के जंजाल में पड़ा हुआ हूँ

हाशिम रज़ा जलालपुरी

तू नहीं है तो तिरे हमनाम से रिश्ता रक्खा

हाशिम रज़ा जलालपुरी

मुस्तक़िल हाथ मिलाते हुए थक जाता हूँ

हाशिम रज़ा जलालपुरी

फ़ैसला हिज्र का मंज़ूर भी हो सकता है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

दश्त में ख़ाक उड़ाते हैं दुआ करते हैं

हाशिम रज़ा जलालपुरी

बहुत दिन तक कोई चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता

हाशिम रज़ा जलालपुरी

वो एक रात की गर्दिश में इतना हार गया

हसीब सोज़

तिरी मदद का यहाँ तक हिसाब देना पड़ा

हसीब सोज़

शौक़ से आप ये अंग्रेज़ी दवा भी लेते

हसीब सोज़

बड़े हिसाब से इज़्ज़त बचानी पड़ती है

हसीब सोज़

दिल में हो आस तो हर काम सँभल सकता है

हसन नईम

हर ज़ख़्म-ए-दिल से अंजुमन-आराई माँग लो

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

कल ख़्वाब में देखा सखी मैं ने पिया का गाँव रे

हसन कमाल

झुलसे बदन न सुलगें आँखें ऐसे हैं दिन-रात मिरे

हसन कमाल

चश्म-ए-जुनूँ में हुस्न-ए-सलासिल है बे-क़रार

हसन बख़्त

शुआ-ए-ज़र न मिली रंग-ए-शाइराना मिला

हसन अज़ीज़

कमाँ उठाओ कि हैं सामने निशाने बहुत

हसन अज़ीज़

अजीब हाल है सहरा-नशीं हैं घर वाले

हसन अज़ीज़

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