इकाई Poetry (page 19)

यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था

एहसान दानिश

हंगामा-ए-ख़ुदी से तू बे-नियाज़ हो जा

एहसान दानिश

बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे

एहसान दानिश

ता-अबद हासिल-ए-अज़ल हूँ मैं

डॉ. पिन्हाँ

मैं सुर्ख़ फूल को छू कर पलटने वाला था

दिलावर अली आज़र

ग़म को वज्ह-ए-हयात कहते हैं

द्वारका दास शोला

वक़्त की सदियाँ

दाऊद ग़ाज़ी

मुलाक़ात

दाऊद ग़ाज़ी

मशवरा

दाऊद ग़ाज़ी

इल्म

दाऊद ग़ाज़ी

पर्दा-दार हस्ती थी ज़ात के समुंदर में

दत्तात्रिया कैफ़ी

फ़िदा अल्लाह की ख़िल्क़त पे जिस का जिस्म ओ जाँ होगा

दत्तात्रिया कैफ़ी

जब आदमी मुद्दआ-ए-हक़ है तो क्या कहें मुद्दआ' कहाँ है

दर्शन सिंह

समझना फ़हम गर कुछ है तबीई से इलाही को

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मिलाऊँ किस की आँखों से मैं अपनी चश्म-ए-हैराँ को

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है

दाग़ देहलवी

अब वो ये कह रहे हैं मिरी मान जाइए

दाग़ देहलवी

गुफ़्तुगू में वो हलावत वो अमल में इख़्लास

दाएम ग़व्वासी

बाब-ए-रहमत पे दुआ गिर्या-कुनाँ हो जैसे

दाएम ग़व्वासी

इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई

चराग़ हसन हसरत

फ़ज़ा में कैफ़-फ़शाँ फिर सहाब है साक़ी

चरख़ चिन्योटी

आसिफ़ुद्दौला का इमामबाड़ा लखनऊ

चकबस्त ब्रिज नारायण

नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं

चकबस्त ब्रिज नारायण

न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा

चकबस्त ब्रिज नारायण

कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में

चकबस्त ब्रिज नारायण

फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना

चकबस्त ब्रिज नारायण

अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता

चकबस्त ब्रिज नारायण

संग को छोड़ के तू ने कभी सोचा ही नहीं

बबल्स होरा सबा

बे-क़रारी दिल-ए-मुज़्तर की बढ़ाई हम ने

बबल्स होरा सबा

दास्तान-ए-शमअ' थी या क़िस्सा-ए-परवाना था

ब्रहमा नन्द जलीस

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