हुआ Poetry (page 1)

उसे समझा-बुझा के हम तो हारे

फ़र्रुख़ जाफ़री

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

सर पर किसी ग़रीब के नाचार गिर पड़े

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ज़मीन मेरी रहेगी न आइना मेरा

ग़ुलाम हुसैन साजिद

दिन हो कि हो वो रात अभी कल की बात है

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

तेज़ है मेरा क़लम तलवार से

एज़ाज़ काज़मी

जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है

फ़हमीदा रियाज़

पहले तो फ़क़त उस का तलबगार हुआ मैं

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

सुल्तान अख़्तर पटना के नाम

रज़ा नक़वी वाही

आओ फिर से दिया जलाएँ

अटल बिहारी वाजपेयी

कहानी बस इतनी सी थी

मर्यम तस्लीम कियानी

दस्तूर साज़ी की कोशिश

रज़ा नक़वी वाही

मकान ख़ाली है

अज़ीज़ क़ैसी

फूलों से सजा इक सेज दिखा

असरा रिज़वी

बहुत ख़ूब नक़्शा मिरे घर का है

फ़ारूक़ इंजीनियर

ख़ुद-सताई से न हम बाज़ अना से आए

आज़ाद हुसैन आज़ाद

पिछले बरस तुम साथ थे मेरे और दिसम्बर था

फ़रह शाहिद

मैं लौह-ए-अर्ज़ पर नाज़िल हुआ सहीफ़ा हूँ

अली अकबर अब्बास

देखते ही धड़कनें सारी परेशाँ हो गईं

एहतिमाम सादिक़

दीवार

मुबश्शिर अली ज़ैदी

तिरे ख़याल के बादल उतर के आए हैं

तरुणा मिश्रा

बात में कुछ मगर बयान में कुछ

फ़ारूक़ इंजीनियर

चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद

अहमद नदीम क़ासमी

किस रंग में हैं अहल-ए-वफ़ा उस से न कहना

महमूद शाम

बशारत के कासों में

हामिद जीलानी

इस्तिआ'रा

हारिस ख़लीक़

इंतिज़ार

अभिषेक कुमार अम्बर

नसब-नामा

मोईन निज़ामी

वो हातिफ़ की ज़बान में कलाम करने लगी

जवाज़ जाफ़री

मैं ने बाग़ की जानिब पीठ कर ली

जवाज़ जाफ़री

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