हुआ Poetry (page 239)

कोई ग़ुल हुआ था न शोर-ए-ख़िज़ाँ

आशुफ़्ता चंगेज़ी

घरौंदे ख़्वाबों के सूरज के साथ रख लेते

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बादबाँ खोलेगी और बंद-ए-क़बा ले जाएगी

आशुफ़्ता चंगेज़ी

आँखों के सामने कोई मंज़र नया न था

आशुफ़्ता चंगेज़ी

ख़ुद से मैं बे-यक़ीं हुआ ही नहीं

आस मोहम्मद मोहसिन

बोसीदा जिस्म-ओ-जाँ की क़बाएँ लिए हुए

आस मोहम्मद मोहसिन

था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली

आनिस मुईन

न थी ज़मीन में वुसअत मिरी नज़र जैसी

आनिस मुईन

न जाने बाहर भी कितने आसेब मुंतज़िर हों

आनिस मुईन

बदन की अंधी गली तो जा-ए-अमान ठहरी

आनिस मुईन

तू मेरा है

आनिस मुईन

मिलन की साअ'त को इस तरह से अमर किया है

आनिस मुईन

हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और

आनिस मुईन

इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें

आनिस मुईन

अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ

आनिस मुईन

उस के चेहरे पे तबस्सुम की ज़िया आएगी

आनन्द सरूप अंजुम

मैं डर रहा हूँ हर इक इम्तिहान से पहले

आनन्द सरूप अंजुम

कुछ भी नहीं है पास तुम्हारी दुआ तो है

आनन्द सरूप अंजुम

हो गए आँगन जुदा और रास्ते भी बट गए

आनन्द सरूप अंजुम

कँवल जो वो कनार-ए-आबजू न हो

आमिर सुहैल

ठीक हुआ जो बिक गए सैनिक मुट्ठी भर दीनारों में

आलोक श्रीवास्तव

किसी और ने तो बुना नहीं मिरा आसमाँ मिरा आसमाँ

आलोक श्रीवास्तव

हर बार हुआ है जो वही तो नहीं होगा

आलोक श्रीवास्तव

अगर सफ़र में मिरे साथ मेरा यार चले

आलोक श्रीवास्तव

तुम 'रज़ा' बन के मुसलमान जो काफ़िर ही रहे

आले रज़ा रज़ा

अल्लाह नज़र कोई ठिकाना नहीं आता

आले रज़ा रज़ा

हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका

आल-ए-अहमद सूरूर

बस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा

आल-ए-अहमद सूरूर

टीपू की आवाज़

आल-ए-अहमद सूरूर

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