न जाने बाहर भी कितने आसेब मुंतज़िर हों
अभी मैं अंदर के आदमी से डरा हुआ हूँ
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1363) Peoples Rate This
दरकार तहफ़्फ़ुज़ है प साँस भी लेना है
न थी ज़मीन में वुसअत मिरी नज़र जैसी
अंदर की दुनिया से रब्त बढ़ाओ 'आनिस'
वो मेरे हाल पे रोया भी मुस्कुराया भी
अंजाम को पहुँचूँगा मैं अंजाम से पहले
हमारी मुस्कुराहट पर न जाना
बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है
कितने ही पेड़ ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ से उजड़ गए
जीवन को दुख दुख को आग और आग को पानी कहते
ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा
ये इंतिज़ार सहर का था या तुम्हारा था
हैरत से जो यूँ मेरी तरफ़ देख रहे हो