ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा
नई रुतों में दरख़्तों का बार कम होगा
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गूँजता है बदन में सन्नाटा
गया था माँगने ख़ुशबू मैं फूल से लेकिन
अंदर की दुनिया से रब्त बढ़ाओ 'आनिस'
वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था
क्यूँ खुल गए लोगों पे मिरी ज़ात के असरार
बिखर के फूल फ़ज़ाओं में बास छोड़ गया
ये क़र्ज़ तो मेरा है चुकाएगा कोई और
याद है 'आनिस' पहले तुम ख़ुद बिखरे थे
बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है
गए ज़माने की चाप जिन को समझ रहे हो
अंजाम को पहुँचूँगा मैं अंजाम से पहले