दरकार तहफ़्फ़ुज़ है प साँस भी लेना है
दीवार बनाओ तो दीवार में दर रखना
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मुमकिन है कि सदियों भी नज़र आए न सूरज
ये क़र्ज़ तो मेरा है चुकाएगा कोई और
था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली
इक डूबती धड़कन की सदा लोग न सुन लें
गूँजता है बदन में सन्नाटा
क्यूँ खुल गए लोगों पे मिरी ज़ात के असरार
कितने ही पेड़ ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ से उजड़ गए
अंदर की दुनिया से रब्त बढ़ाओ 'आनिस'
हमारी मुस्कुराहट पर न जाना
तुम्हारे नाम के नीचे खिंची हुई है लकीर
हैरत से जो यूँ मेरी तरफ़ देख रहे हो
अंजाम को पहुँचूँगा मैं अंजाम से पहले