हमारी मुस्कुराहट पर न जाना
दिया तो क़ब्र पर भी जल रहा है
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बदन की अंधी गली तो जा-ए-अमान ठहरी
था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली
ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा
हैरत से जो यूँ मेरी तरफ़ देख रहे हो
गहरी सोचें लम्बे दिन और छोटी रातें
याद है 'आनिस' पहले तुम ख़ुद बिखरे थे
गूँजता है बदन में सन्नाटा
एक नज़्म
दरकार तहफ़्फ़ुज़ है प साँस भी लेना है
न थी ज़मीन में वुसअत मिरी नज़र जैसी
मुमकिन है कि सदियों भी नज़र आए न सूरज
इक कर्ब-ए-मुसलसल की सज़ा दें तो किसे दें