गहरी सोचें लम्बे दिन और छोटी रातें
वक़्त से पहले धूप सरों पे आ पहुँची
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उतारा दिल के वरक़ पर तो कितना पछताया
तू मेरा है
इक डूबती धड़कन की सदा लोग न सुन लें
याद है 'आनिस' पहले तुम ख़ुद बिखरे थे
हमारी मुस्कुराहट पर न जाना
वो मेरे हाल पे रोया भी मुस्कुराया भी
दरकार तहफ़्फ़ुज़ है प साँस भी लेना है
कितने ही पेड़ ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ से उजड़ गए
ये इंतिज़ार सहर का था या तुम्हारा था
बदन की अंधी गली तो जा-ए-अमान ठहरी
न थी ज़मीन में वुसअत मिरी नज़र जैसी
क्यूँ खुल गए लोगों पे मिरी ज़ात के असरार