हुआ Poetry (page 5)

रात फिर दर्द बनी

ज़ुबैर रिज़वी

नया जन्म

ज़ुबैर रिज़वी

बशारत पानी की

ज़ुबैर रिज़वी

ज़िंदगी ऐसे घरों से तो खंडर अच्छे थे

ज़ुबैर रिज़वी

वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए

ज़ुबैर रिज़वी

था हर्फ़-ए-शौक़ सैद हुआ कौन ले गया

ज़ुबैर रिज़वी

शौक़ उर्यां है बहुत जिन के शबिस्तानों में

ज़ुबैर रिज़वी

शाम होने वाली थी जब वो मुझ से बिछड़ा था ज़िंदगी की राहों में

ज़ुबैर रिज़वी

पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है

ज़ुबैर रिज़वी

मैं ने कब बर्क़-ए-तपाँ मौज-ए-बला माँगी थी

ज़ुबैर रिज़वी

कोई चेहरा न सदा कोई न पैकर होगा

ज़ुबैर रिज़वी

कई कोठे चढ़ेगा वो कई ज़ीनों से उतरेगा

ज़ुबैर रिज़वी

कहाँ मैं जाऊँ ग़म-ए-इश्क़-ए-राएगाँ ले कर

ज़ुबैर रिज़वी

कभी ख़िरद से कभी दिल से दोस्ती कर ली

ज़ुबैर रिज़वी

हमारी गर्दिश-ए-पा रास्तों के काम आई

ज़ुबैर रिज़वी

ग़ुरूब-ए-शाम ही से ख़ुद को यूँ महसूस करता हूँ

ज़ुबैर रिज़वी

बरसों में तुझे देखा तो एहसास हुआ है

ज़ुबैर रिज़वी

तिरी तस्वीर उठाई हुई है

ज़ुबैर क़ैसर

नज़र नज़र से मिलाओगे मारे जाओगे

ज़ुबैर क़ैसर

कहीं से आया तुम्हारा ख़याल वैसे ही

ज़ुबैर क़ैसर

झुलसती धूप में मुझ को जला के मारेगा

ज़ुबैर क़ैसर

हर तरफ़ फैला हुआ था बे-यक़ीनी का धुआँ

ज़ुबैर फ़ारूक़

है हर्फ़ हर्फ़ ज़ख़्म की सूरत खिला हुआ

ज़ुबैर फ़ारूक़

मेरा सारा बदन राख हो भी चुका मैं ने दिल को बचाया है तेरे लिए

ज़ुबैर फ़ारूक़

लोग कहते हैं यहाँ एक हसीं रहता था

ज़ुबैर फ़ारूक़

दिल का ग़म से ग़म का नम से राब्ता बनता गया

ज़ुबैर फ़ारूक़

आँखों में है बसा हुआ तूफ़ान देखना

ज़ुबैर फ़ारूक़

ज़ेहन परेशाँ हो जाता है और भी कुछ तन्हाई में

ज़ुबैर अमरोहवी

फिर घड़ी आ गई अज़िय्यत की

ज़ुबैर अमरोहवी

एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है

ज़ुबैर अली ताबिश

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