भाग Poetry (page 4)

ग़म-गुसार

हमीदा शाहीन

सवाल दिल का शाम-ए-ग़म को और उदास कर गया

हमीद नसीम

हर्फ़-ए-ग़ज़ल से रंग-ए-तमन्ना भी छीन ले

हमीद अलमास

ख़्वाहाँ तिरे हर रंग में ऐ यार हमीं थे

हैदर अली आतिश

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए

हफ़ीज़ जालंधरी

बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं

ग़नी एजाज़

एक नज़्म

फ़ज़्ल ताबिश

शख़्सियत का ये तवाज़ुन तेरा हिस्सा है 'फ़ज़ा'

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

राएगाँ सब कुछ हुआ कैसी बसीरत क्या हुनर

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ज़ख़्मी उँगलियों से एक नज़्म

फ़ातिमा हसन

दुनिया क्या है बर्फ़ की इक अलमारी है

फ़ारूक़ शफ़क़

जब हम पहली बार मिले थे

फ़ारूक़ बख़्शी

लाख दिल ने पुकारना चाहा

फरीहा नक़वी

मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है

फ़रहत एहसास

मेरी कोई तारीफ़ नहीं है मैं वक़्फ़ों वक़्फ़ों में हूँ

फ़रहत एहसास

घर में चीज़ें बढ़ रही हैं ज़िंदगी कम हो रही है

फ़रहत एहसास

बदन और रूह में झगड़ा पड़ा है

फ़रहत एहसास

ज़िंदाँ की एक सुब्ह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

कहा लैला की माँ ने

दिलावर फ़िगार

'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो

दिलावर फ़िगार

बे-हद बेचैनी है लेकिन मक़्सद ज़ाहिर कुछ भी नहीं

दीप्ति मिश्रा

सर उठा के मत चलिए आज के ज़माने में

चरण सिंह बशर

दीवार-ए-काबा 19 नवम्बर 1989

बिलाल अहमद

ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है

बशीर बद्र

दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे

बशीर बद्र

क्या बिछड़ कर रह गया जाने भरी बरसात में

बशीर मुंज़िर

या मह-ओ-साल की दीवार गिरा दी जाए

बशीर अहमद बशीर

तो ऐसा क्यूँ नहीं करते

बशर नवाज़

जाने क्या देखा था मैं ने ख़्वाब में

बशर नवाज़

रहेगा किस का हिस्सा बेशतर मेरे मिटाने में

बर्क़ देहलवी

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