भाग Poetry (page 1)

ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी

आमिर अमीर

सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

ख़ुद-कलामी ख़ातून-ए-ख़ाना की

ज़ेहरा अलवी

ये एक मोहब्बत है

ज़ीशान साहिल

आधी ज़िंदगी

ज़ीशान साहिल

बदन के दोश पे साँसों का मक़बरा मैं हूँ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ज़ोर से थोड़ी उसे पुकारा करना है

ज़हरा क़रार

हर्माफ्रोडाइट

ज़ाहिद इमरोज़

वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है

ज़फ़र इक़बाल

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

एक मुट्ठी एक सहरा भेज दे

ज़फ़र गोरखपुरी

मैं जीना चाहता हूँ मगर

यूसुफ़ तक़ी

कोई पूछे मिरे महताब से मेरे सितारों से

यासमीन हमीद

आतिश-ए-ग़म में भभूका दीदा-ए-नमनाक था

याक़ूब आमिर

इक-बटा-दो को करूँ क्यूँ न रक़म दो-बटा-चार

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

मेरे दुख की दवा भी रखता है

विशाल खुल्लर

मुसाफ़िरों के लिए साज़गार थोड़ी है

विकास शर्मा राज़

इक ऐसा मरहला-ए-रह-गुज़र भी आता है

उम्मीद फ़ाज़ली

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है

उमैर नजमी

मुस्कुराते हुए फूलों का अरक़ सब का है

तिलक राज पारस

नज़र नज़र से मिला कर शराब पीते हैं

तसनीम फ़ारूक़ी

फ़िशार-ए-हुस्न से आग़ोश-ए-तंग महके है

तनवीर अहमद अल्वी

मोती नहीं हूँ रेत का ज़र्रा तो मैं भी हूँ

तैमूर हसन

मेरी बीवी क़ब्र में लेटी है जिस हंगाम से

सय्यद ज़मीर जाफ़री

तर्क-ए-उल्फ़त में कोई यकता न था

सय्यद मुनीर

तुझ से बिछड़ूँ तो ये ख़दशा है अकेला हो जाऊँ

सुलेमान ख़ुमार

मेरे अंदर

सुबोध लाल साक़ी

डोर

सुबोध लाल साक़ी

सुनहरा ही सुनहरा वादा-ए-फ़र्दा रहा होगा

सुबोध लाल साक़ी

समझते थे ,वो समझाया गया है

सोनरूपा विशाल

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