ाज़न Poetry (page 2)

किसी रुत में जब मुस्कुराता है तू

सलीम शहज़ाद

अभी मौजूद थी लेकिन अभी गुम हो गई है

सलीम फ़राज़

नवाह-ए-शौक़ में है इक दयार-ए-निकहत-ए-गुल

सज्जाद बाक़र रिज़वी

तुम्हारे लम्स को ख़ुद मैं उतार सकता हूँ

साइम जी

मुख़्तसर वक़्त है पर बातें कर

साइम जी

अधूरी नस्ल का पूरा सच

सईद अहमद

खेल रचाया उस ने सारा वर्ना फिर क्यूँ होता मैं

साबिर वसीम

ये इज़्न-ए-आम है ऐ वाइ'ज़ो आओ वुज़ू कर लो

रिफ़अतुल क़ासमी

रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह

रिफ़अत सुलतान

क्या कहूँ क्या मिला है क्या न मिला

रविश सिद्दीक़ी

आँखों आँखों में मोहब्बत का पयाम आ ही गया

रशीद शाहजहाँपुरी

गुम-गश्ता मंज़िलों का मुझे फिर निशान दे

रशीद क़ैसरानी

पड़ी रहेगी अगर ग़म की धूल शाख़ों पर

राजेन्द्र नाथ रहबर

कभी किसी से न हम ने कोई गिला रक्खा

इरफ़ान सत्तार

हर-चंद गाम गाम हवादिस सफ़र में हैं

इक़बाल अज़ीम

ये नक़्श हम जो सर-ए-लौह-ए-जाँ बनाते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जब झूट रावियों के क़लम बोलने लगे

हुसैन ताज रिज़वी

क्या क्या न ज़िंदगी के फ़साने रक़म हुए

हिमायत अली शाएर

तिश्ना-कामों को यहाँ कौन सुबू देता है

हसन आबिदी

विसाल-घड़ियों में रेज़ा रेज़ा बिखर रहे हैं

हसन अब्बास रज़ा

विसाल-घड़ियों में रेज़ा रेज़ा बिखर रहे हैं

हसन अब्बास रज़ा

वो दिल में और क़रीब-ए-रग-ए-गुलू भी मिले

हनीफ़ अख़गर

फिर वो नज़र है इज़्न-ए-तमाशा लिए हुए

गोपाल मित्तल

हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सिसक रही हैं थकी हवाएँ लिपट के ऊँचे सनोबरों से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मुंतज़िर

ग़ौसिया ख़ान सबीन

मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था

फ़िराक़ गोरखपुरी

हम हैं बस इज़्न-ए-सफ़र होने तक

फ़रताश सय्यद

यूँही कर लेते हैं औक़ात बसर अपना क्या

फ़ारूक़ नाज़की

इसे भी छोड़ूँ उसे भी छोड़ूँ तुम्हें सभी से ही मसअला है?

फरीहा नक़वी

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