जगह Poetry (page 22)

तिरी जबीं पे मिरी सुब्ह का सितारा है

अख़्तर सईद ख़ान

अब ज़मीं भी जगह नहीं देती

अख़्तर रज़ा सलीमी

वो भी क्या दिन थे क्या ज़माने थे

अख़्तर रज़ा सलीमी

बताएँ क्या कि कहाँ पर मकान होते थे

अख़्तर रज़ा सलीमी

दरिया नज़र न आए न सहरा दिखाई दे

अख़तर मुस्लिमी

क़र्या-ए-जाँ से गुज़र कर हम ने ये देखा भी है

अख़्तर होशियारपुरी

फिर ये हुआ कि लोग दरीचों से हट गए

अख़्तर होशियारपुरी

मंज़िलों के फ़ासले दीवार-ओ-दर में रह गए

अख़्तर होशियारपुरी

ये ग़ाज़ा है काजल है उबटन है क्या है

अख़लाक़ अहमद आहन

ये जो इक शाख़ है हरी थी अभी

अकबर मासूम

हर दुकाँ अपनी जगह हैरत-ए-नज़्ज़ारा है

अकबर हैदराबादी

निगह-ए-शौक़ से हुस्न-ए-गुल-ओ-गुलज़ार तो देख

अकबर हैदराबादी

ज़ोर-ओ-ज़र का ही सिलसिला है यहाँ

अकबर हमीदी

जल्वा-ए-दरबार-ए-देहली

अकबर इलाहाबादी

दो पल के हैं ये सब मह ओ अख़्तर न भूलना

अजमल अजमली

कहा दिन को भी ये घर किस लिए वीरान रहता है

ऐतबार साजिद

शीशे शीशे को पैवस्त-ए-जाँ मत करो

अहसन यूसुफ़ ज़ई

शब-रंग परिंदे रग-ओ-रेशे में उतर जाएँ

अहसन यूसुफ़ ज़ई

काग़ज़ की नाव हूँ जिसे तिनका डुबो सके

अहसन यूसुफ़ ज़ई

कशिश-ए-हुस्न की ये अंजुमन-आराई है

अहसन मारहरवी

रिश्ता-ए-दिल उसी से मिलता है

अहमद निसार

मुस्तक़बिल

अहमक़ फफूँदवी

हर गली कूचे में लश्कर देखो

अहमद वहीद अख़्तर

आईना बन के अपना तमाशा दिखाएँ हम

अहमद शहरयार

जिस जगह आगही मुक़य्यद है

अहमद सज्जाद बाबर

कल और आज

अहमद राही

दर्द-ए-मुश्तरक

अहमद राही

इक ज़माना था कि सब एक जगह रहते थे

अहमद मुश्ताक़

पानी में अक्स और किसी आसमाँ का है

अहमद मुश्ताक़

मिल ही जाएगा कभी दिल को यक़ीं रहता है

अहमद मुश्ताक़

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