चलो चलें Poetry (page 73)

मिज़ाज-ए-सहल-तलब अपना रुख़्सतें माँगे

अब्दुल अहद साज़

मेरी आँखों से गुज़र कर दिल ओ जाँ में आना

अब्दुल अहद साज़

लफ़्ज़ों के सहरा में क्या मा'नी के सराब दिखाना भी

अब्दुल अहद साज़

दिखाई देने के और दिखाई न देने के दरमियान सा कुछ

अब्दुल अहद साज़

अबस है राज़ को पाने की जुस्तुजू क्या है

अब्दुल अहद साज़

बैठे रहने से तो लौ देते नहीं ये जिस्म ओ जाँ

अब्बास ताबिश

यूँ तो शीराज़ा-ए-जाँ कर के बहम उठते हैं

अब्बास ताबिश

रम्ज़-गर भी गया रम्ज़-दाँ भी गया

अब्बास ताबिश

मुझ तही-जाँ से तुझे इंकार पहले तो न था

अब्बास ताबिश

झिलमिल से क्या रब्त निकालें कश्ती की तक़दीरों का

अब्बास ताबिश

हर-चंद तिरी याद जुनूँ-ख़ेज़ बहुत है

अब्बास ताबिश

दश्त-ए-हैरत में सबील-ए-तिश्नगी बन जाइए

अब्बास ताबिश

जब कोई तीर हवादिस की कमाँ से आया

अब्बास रिज़वी

फिर वही अंदोह-ए-जाँ है और मैं

अब्बास कैफ़ी

ये तुम से किस ने कहा है कि दास्ताँ न कहो

अब्बास अलवी

जो सारे हम-सफ़र इक बार हिर्ज़-ए-जाँ कर लें

अब्बास अलवी

ज़र्फ़ है किस में कि वो सारा जहाँ ले कर चले

आज़िम कोहली

सुबू उठा मिरे साक़ी कि रात जाती है

आज़िम कोहली

दूर है मंज़िल तो क्या रस्ता तो है

आज़िम कोहली

दर-हक़ीक़त इत्तिसाल-ए-जिस्म-ओ-जाँ है ज़िंदगी

अातिश बहावलपुरी

मुझे उन से मोहब्बत हो गई है

अातिश बहावलपुरी

कमाल-ए-हुस्न का जिस से तुम्हें ख़ज़ाना मिला

अातिश बहावलपुरी

मिरी राख में थीं कहीं कहीं मेरे एक ख़्वाब की किर्चियाँ

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

तिरी दोस्ती का कमाल था मुझे ख़ौफ़ था न मलाल था

आतिफ़ वहीद 'यासिर'

सर झुकाए सर-ए-महशर जो गुनहगार आए

आसी रामनगरी

बोसीदा जिस्म-ओ-जाँ की क़बाएँ लिए हुए

आस मोहम्मद मोहसिन

हर इक जन्नत के रस्ते हो के दोज़ख़ से निकलते हैं

आल-ए-अहमद सूरूर

निगाहों में इक़रार सारे हुए हैं

आग़ा अकबराबादी

क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव

आग़ा अकबराबादी

जीते-जी के आश्ना हैं फिर किसी का कौन है

आग़ा अकबराबादी

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