चलो चलें Poetry (page 2)

दिल्ली पे क़ुर्बान

इज़हार मलीहाबादी

टीपू-सुल्तान

इज्तिबा रिज़वी

मुर्ग़-ए-मरहूम

असद जाफ़री

ज़ाबता

हबीब जालिब

ज़िंदगी और मौत

फ़ज़लुर्रहमान

रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली

बदन को छू लें तिरे और सुर्ख़-रू हो लें

शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया

दूर तक इक सराब देखा है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

वो सानेहा हुआ था कि बस दिल दहल गए!

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

कातता हूँ रात-भर अपने लहू की धार को

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

बड़ी मुश्किल कहानी थी मगर अंजाम सादा है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

नाकामी-ए-सद-हसरत-ए-पारीना से डर जाएँ

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

जितनी भी तेज़ हो सके रफ़्तार कर के देख

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी

ज़ुहूर नज़र

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री

ज़ुहूर नज़र

छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं

ज़ुहूर नज़र

शाम-ए-ग़म याद नहीं सुब्ह-ए-तरब याद नहीं

ज़ुहैर कंजाही

धुआँ सिगरेट का बोतल का नशा सब दुश्मन-ए-जाँ हैं

ज़ुबैर रिज़वी

पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम

ज़ुबैर रिज़वी

कहाँ मैं जाऊँ ग़म-ए-इश्क़-ए-राएगाँ ले कर

ज़ुबैर रिज़वी

बिछड़ते दामनों में फूल की कुछ पत्तियाँ रख दो

ज़ुबैर रिज़वी

तक रहा है तू आसमान में क्या

ज़िया ज़मीर

रेज़ा रेज़ा तिरे चेहरे पे बिखरती हुई शाम

ज़िया ज़मीर

माना कि यहाँ अपनी शनासाई भी कम है

ज़िया ज़मीर

जिस तरह प्यासा कोई आब-ए-रवाँ तक पहुँचे

ज़िया ज़मीर

जाँ का दुश्मन है मगर जान से प्यारा भी है

ज़िया ज़मीर

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