जाओ Poetry (page 13)

ज़िंदगानी हँस के तय अपना सफ़र कर जाएगी

सबा इकराम

भूल जाना था तो फिर अपना बनाया क्यूँ था

सबा अफ़ग़ानी

हक़-ओ-नाहक़ जलाना हो किसी को तो जला देना

साइल देहलवी

वक़्त तो वक़्त है रुकता नहीं इक पल के लिए

सादुल्लाह शाह

हम को ख़ुश आया तिरा हम से ख़फ़ा हो जाना

सादुल्लाह शाह

याद आते हो किस सलीक़े से

रूही कंजाही

सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

नहीं छुपता तिरे इ'ताब का रंग

रियाज़ ख़ैराबादी

जी उठे हश्र में फिर जी से गुज़रने वाले

रियाज़ ख़ैराबादी

साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ

रिन्द लखनवी

सदमे गुज़रे ईज़ा गुज़री

रिन्द लखनवी

आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा

रिन्द लखनवी

जब से आया हूँ तेरे गाँव में

रिफ़अत सुलतान

दौलत-ए-हर्फ़-ओ-बयाँ साथ लिए फिरते हैं

रिफ़अत सरोश

सर-ब-सर यार की मर्ज़ी पे फ़िदा हो जाना

रहमान फ़ारिस

नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है

रहमान फ़ारिस

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं

रहमान फ़ारिस

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं

रहमान फ़ारिस

तेरी गली को छोड़ के जाना तो है नहीं

रेहाना रूही

हसीन दुनिया उजड़ गई तो

रेहान अल्वी

इस समुंदर पे इक इल्ज़ाम ही धर जाना है

रज़्ज़ाक़ अादिल

दिल के दर्द के कम होने का तन्हा कुछ सामान हुआ

रज़िया फ़सीह अहमद

ख़्वाब-फ़रोश

रज़ी रज़ीउद्दीन

मैं जब भी क़त्ल हो कर देखता हूँ

राज़ी अख्तर शौक़

जिस ने बनाया हर आईना मैं ही था

राज़ी अख्तर शौक़

कुछ तो हासिल हो गया इरफ़ान-ए-मय-ख़ाना मुझे

रज़ा जौनपुरी

मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ

रज़ा अज़ीमाबादी

लाज़िम है बुलंद आह की रायत न करे तू

रज़ा अज़ीमाबादी

जो तिरे दर पे मेरी जाँ आया

रज़ा अज़ीमाबादी

उन के जाने से ये दिल में हुई सूरत पैदा

रौनक़ टोंकवी

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